Tuesday 21 October 2014

Chambal Queen Phoolan Devi Biography In Hindi

कौन थी फूलन देवी


फूलन देवी... एक ऐसी शख्सियत, जिसने चंबल के बीहड़ों से संसद तक का सफर तय किया था। 80 के दशक में ये महिला डकैत ऐसी थी जिसके नाम से पुलिस महकमे के पसीने छूट जाते थे। वो कभी गांव की एक आम लड़की हुआ करती थी,  जिसे केवल अपने परिवार से मतलब था। घर में बाहर से पानी लाना और पूरे परिवार के लिए खाना पकाना। फिर चैन की नींद सोना। बस यही उसका जीवन था, लेकिन अचानक उसके साथ हुई एक घटना ने उसे बंदूक उठाने को विवश कर दिया।


दरअसल, गांव के कुछ लोगों ने फूलन देवी के साथ बलात्कार किया था। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने वालों में कुल 11 लोग इसमें शामिल थे। इस घटना के बाद फूलन देवी के परिवार ने न्याय की मांग के लिए कई दरवाजे खटखटाए, लेकिन हर तरफ से उसे मायूसी ही हाथ लगी। न्याय नहीं मिलने पर मजबूर हुई फूलन देवी ने बंदूक उठा ली और डाकूओं के गिरोह में शामिल हो गई। एक दिन फूलन अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ गांव में पहुंची और उसके साथ बलात्कार करने वाले 11 लोगों को एक-एक कर लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। ऐसा करने के बाद फूलन देवी प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चित हो गई।


यूपी और मध्यप्रदेश पुलिस नहीं पकड़ सकी तो खुद किया सरेंडर



साल 1981 में फूलन तब चर्चा में आईं जब उनके गिरोह पर बेहमई में सवर्ण जातियों के 22 लोगों की हत्या का आरोप लगा। मगर बाद में फूलन ने दावा किया था इस हत्याकांड में उसका हाथ नहीं था। यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस लंबे समय तक फूलन को पकड़ने में नाकाम रहीं। साल 1983 में इंदिरा गांधी सरकार ने उसके सामने आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव रखा।



अपनी शर्तों पर किया आत्मसमर्पण



फूलन ने अपने व गैंग के सदस्यों के आत्मसमर्पण के लिए सरकार के सामने कई शर्तें रखीं। इसमें उसे या उसके किसी साथी को मृत्युदंड नहीं दिया जाए, उसे व उसके गिरोह के लोगों को 8 साल से ज्यादा सजा नहीं दिए जाने की शर्त थी। सरकार ने फूलन की सभी शर्ते मान लीं। शर्तें मान लेने के बाद ही फूलन ने अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था।


मुलायम सिंह यादव लाए थे राजनीति में...



लंबे समय तक बिना मुकदमा चलाए फूलन को जेल में रखा गया। 11 साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचीं। 1998 में वह चुनाव हार गई लेकिन, 1999 में फिर से जीतकर दोबारा संसद पहुंची। जब फूलन की हत्या की गई तब वह मिर्जापुर से सांसद थी।


शेर सिंह राणा ने की हत्या...


साल 2001 में शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी की उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी। खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या के बाद दावा किया था कि उसने 1981 में मारे गए सवर्णों की हत्या का बदला लिया है। यही नहीं, बाद में जेल से फरार होकर उसने एक वीडियो जारी किया था। इस वीडियो में उसने अफगानिस्तान से पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां स्वदेश लाने की कोशिश करने का दावा किया था।


मौत के बाद पति पर लगाए गए थे आरोप


फूलन की मौत को एक राजनीतिक साजिश भी माना जाता है। उनके पति उम्मेद सिंह पर भी आरोप लगे थे, लेकिन वे साबित नहीं हो सके थे। डायरेक्टर शेखर कपूर ने फूलन देवी के जीवन पर आधारित मूवी 'बैंडिट क्वीन' भी बनाई थी, जिस पर खुद फूलन ने आपत्ति जताई थी।






डकैतों की रानी मर गई, लेकिन उसका मिथक ज़िन्दा


पिछले हफ़्ते के आख़िर में डकैतों की रानी फूलन देवी की हत्या करने वाले शेर सिंह राणा को अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी। इसके बाद इस मामले पर विराम लग जाना चाहिए। लेकिन फूलन देवी के जीवन और मौत से पैदा हुए सवाल भारत में आज भी ज्वलन्त सवाल बने हुए हैं। इसका मतलब यह है कि भारतीय समाज में अभी देर तक फूलन देवी के जीवन से जुड़ी घटनाओं की गूँज बनी रहेगी। शायद फूलन देवी का मामला भारत के अपराध विशेषज्ञों की फ़ाइलों में ही दबकर रह जाता यदि 1993 में माला सेन ने उनके बारे में एक क़िताब नहीं लिखी होती। अँग्रेज़ी में लिखी गई इस किताब का शीर्षक था -- इन्डियाज़ बेन्डिट क्वीन : द ट्रयू स्टोरी ऑफ़ फूलन देवी। इसके एक साल बाद ही फ़िल्म-निर्देशक शेखर कपूर ने इस क़िताब पर एक फ़िल्म बना डाली। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की का मानना है कि इस क़िताब और फ़िल्म की ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया होता, यदि फूलन देवी की इस कहानी में भारतीय समाज की समस्याएँ उभर कर सामने नहीं आतीं। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा : बात रॉबिन हुड को आदर्श मानने की ही नहीं हो रही है, जो एक ऐसा डकैत था जो अमीरों की धन-सम्पत्ति लूटकर उससे ग़रीबों की मदद किया करता था। इस कहानी में डकैत की किसी ख़ासियत का महत्त्व नहीं है क्योंकि ग़रीबों को तो लूटा नहीं जा सकता है, उनके पास कुछ होता ही नहीं है और लूट का माल ग़रीबों के साथ बाँटने के पीछे सीधा-सा कारण यह है कि उनकी सहायता से आसानी से बचा जा सकता है और छिपा जा सकता है। लेकिन फिर भी फूलन देवी पर ’अत्याचारों का शिकार होने वाली औरत’ की छाप लगी रही। पिछली सदी के छठे और सातवें दशक में जब वह डकैतियाँ डाला करती थी तब भी और 1983 से 1994 के दौरान जब वह जेल में थी तब भी और उसके बाद जब वह राजनीति में आई तब भी, जब तक कि फूलन देवी को 2001 में मार नहीं दिया गया उसके चारों ओर ’अत्याचारों की शिकार होने वाली औरत’ का प्रभामण्डल बना रहा। अगर उसकी छवि ऐसी औरत की नहीं होती, जिसे अत्याचारों का शिकार होना पड़ा है तो शायद ही वह उत्तरप्रदेश के उस इलाके से दो बार चुनाव जीत कर संसद में आती, जिस इलाके में वह डकैतियाँ डाला करती थी। फूलन देवी का भाग्य भारत की बहुत सी औरतों के भाग्य से मिलता-जुलता है, लेकिन एक फ़र्क है। भारत की करोड़ों औरतें चुपचाप वह सब कुछ सह लेती हैं, जो समाज में उनके साथ हो रहा है, लेकिन फूलन देवी ने उस अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द की थी। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा : इसके बहुत से कारण हैं कि फूलन देवी भारतीय जनता की नज़र में अपराधी बनने की जगह उसके मन में एक नायिका की तरह अमर हो गई है। इनमें भारत में सम्पत्ति का उत्तराधिकार पाने की परम्परा भी एक है। इसी वजह से फूलन देवी के चाचा ने उसके दादा-दादी की मृत्यु के बाद सारी सम्पत्ति अपने नाम कर ली थी और फूलन के परिवार को भूखों मरने के लिए छोड़ दिया था। लड़कियों की जल्दी शादी कर देने की परम्परा एक और कारण बना। फूलन की शादी 11 साल की उम्र में ही अपने से उम्र में तीन गुना ज़्यादा बड़े पुरूष के साथ कर दी गई थी। विवाह के बाद स्त्रियों को अपने भाग्य भरोसे छोड़ देने की परम्परा भी एक कारण रहा। पति के साथ झगड़ा होने और पति को छोड़ने की सारी कोशिशों के बावजूद फूलन अपने पति के ही चंगुल में फँसी रही और उस चंगुल से बाहर नहीं निकल सकी। भारतीय समाज में दलितों का दमन करने की परम्परा भी एक कारण रहा। फूलन देवी मल्लाह जाति की थी और ठाकुरों ने उसके साथ अनेक बार बलात्कार किया था। यहाँ तक कि जब वह डकैत बन गई तो उसके दल के वरिष्ठ ठाकुर डाकुओं ने भी उसके साथ बलात्कार किया। बेहमई गाँव में फूलन देवी के साथ हुआ बलात्कार ही उसके द्वारा किए गए सबसे बड़े अपराध का कारण बना। 1981 में फूलन देवी अपने डकैत-दल की सरदार बन गई थी और उसने बेहमई में ख़ुद से हुए बलात्कार का बदला बेहमई में 22 आदमियों की हत्या करके चुकाया। ये सभी 22 व्यक्ति वे थे, जिन्होंने उसके साथ बलात्कार किया था या जो उस बलात्कार से किसी न किसी रूप में सम्बन्धित थे। इतना बड़ा अपराध करने के बाद भी फूलन की छवि ’नायिका’ की ही बनी। 1994 में जेल से छूटने के बाद फूलनदेवी राजनीति में आ गई और अत्याचार और दमन का शिकार होने वाले दलित जाति के लोगों और औरतों का प्रतिनिधित्व करने लगी। राजनीति में वह बेहद सफल रही और दो बार सांसद चुनी गई। लेकिन 25 जुलाई 2001 को जब वह दिल्ली में लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने के बाद घर लौट रही थी तो तीन नकाबपोश बन्दूकधारियों ने नज़दीक से गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा : और अब उन तीन हत्यारों में से एक ठाकुर जाति के शेर सिंह राणा को अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है। अब यह मामला यहीं पर बन्द हो जाना चाहिए। लेकिन सच-सच कहें तो फूलन की ज़िन्दगी पर असर डालने वाली एक भी सामाजिक समस्या भारत में अभी तक हल नहीं की जा सकी है। फिर फूलन देवी भी भारतीयों की नज़र में अपराधी नहीं है, बल्कि वह समाज की नायिका बन गई है।

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